Emotional control के 7 तरीके

7 तरीके जिनसे आप अपनी Emotions को control कर सकते हैं

भावनात्मक बुद्धि (इमोशनल इंटेलिजेन्स या EQ) स्वयं की एवं दूसरों की भावनाओं अथवा संवेगों को समझने, व्यक्त करने और नियंत्रित करने की योग्यता है।

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EQ की आवश्यकता परिस्थितियों के हिसाब से बदलती रहती है, इसलिए यह बहुत जरूरी है कि हर समय हमें भावनात्मक बुद्धि को सुधारने के प्रयास करने चाहिए।

भावनात्मक बुद्धिमत्ता क्या होती है।

EQ की जरूरत को हम details में यहां समझ चुके हैं

हर इंसान को कुछ ऐसे संकेत मिलते हैं, जिनको समझकर वह अपनी भावनात्मक बुद्धिमत्ता के स्तर को पहचान सकते है।

EQ को सुधारने के लिए, यह जानना जरूरी है कि हमारी भावनाएं कैसे पैदा होती हैं।

भावनात्मक बुद्धि कैसे सुधारें

भावनाएं हमारे दिमाग की उपज होती हैं। बहुत बार ऐसा होता है कि हमे अपनी वास्तविक्ता भी वही भावनाऐं नजर आने लगती हैं। हम नकारात्मक भावनाओं के कुचक्र में फंस जाते हैं और उस से बाहर की नहीं सोच पाते हैं।

भावनाएं एक चक्र में प्रदर्शित होती हैं। नकारात्मक भावनाओं से नकारात्मक और सकारात्मक भावनाओं से सकारात्मक चक्र शुरू होता है। यह सब कुछ हमारे दिमाग मे ही होता है, इसलिए इससे निकल पाना बहुत मुश्किल है, क्योंकि हमें सब कुछ वास्तविकता लगता है, जबकि सब कुछ हमारे दिमाग का खेल होता है। इस चक्र को तोड़ने के लिए बहुत जरूरी है कि हम अपनी सोच के बारे में भी सोचें ओर उसका अध्ययन करते रहें।

भावनात्मक बुद्धिमत्ता सिर्फ भावनाओं को नियंत्रित करने की ही योग्यता है। इसलिए यहां हम भावनाओं में सुधार के लिए 7 स्टेज मॉडल का अध्ययन करेंगे।

1. भावनाओं की पहचान

भावनाओं की पहचान करें। कुल मिलाकर 27 और मुख्य रूप से 7 प्रकार की भावनाऐ इंसानों में पाई जाती हैं। सिर्फ अच्छी या बुरी भावनाएं नही बल्कि चिंता, खुशी, तनाव, डिप्रेशन इन सब में भेद करना सीखें।

2. भावनाओं को स्वीकार करें

भावनाओं को पहचान लेने के बाद दूसरा काम है, उनको स्वीकार करना। चाहे भावना अच्छी या बुरी है, उसको स्वीकार करें, क्योंकि विरोध करने से वो भावना और मजबूती से आती है। जैसे जितना भी हम भय को नहीं चाहते, उतना ही हम उसके बारे में सोचते हैं और भय को याद करते हैं। इसलिए हर प्रकार की भावना को स्वीकार करना बहुत जरूरी है।

अगर गुस्सा आ रहा है, तो स्वीकार करें।

चिंता हो रही है, तो स्वीकार करें।

ईर्ष्या हो रही है, तो स्वीकार करें।

3. भावनाओं का अध्ययन करें

भावनाओं को पहचानने और स्वीकारने के बाद हमें हर प्रकार की भावना का अध्ययन करना है। भावना किस काम की वजह से पैदा हुई, किसी परिस्थिति की वजह से या किसी इंसान की वजह से या किसी सोच की वजह से। हर भावना के पीछे ये 4 कारण ही मुख्य होते हैं। भावनाओं में एक तरह का पैटर्न भी हो सकता है। उदाहरण के लिए जब मौसम गर्मी भरा होता है तो ज्यादा इंसानो में दुःखी भावनाएं आती हैं, या जब हम अकेले होते हैं तब डिप्रेशन का असर ज्यादा होता है।

अध्ययन करने के लिए अपने logical Mind का इस्तेमाल करें। हर परिस्थिति के पीछे कारण का अध्ययन करें और भावनाओं को हावी ना होने दें।

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4. भावनाओं को बदलने का आत्मविश्वास

अध्ययन करने के बाद अपने आप को ये विश्वास दिलाना है कि आप इन भावनाओं और नियंत्रित कर सकते हैं। अंत मे हर भावना हमारी प्रतिक्रिया ही होती है, इसलिए यह बहुत जरूरी है कि आत्मविश्वास के साथ एक सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए दिमाग को तैयार किया जाए। आत्मविश्वास के साथ अपनी शारीरिक स्थिति को परिवर्तित करें। हर भावना के लिए शरीर अलग प्रकार से प्रतिक्रिया करता है। उदाहरण के लिए डिप्रेसन में हमारे कंधे झुक जाते हैं। इसलिए सबसे पहले शरीर को सीधा करें, जिससे आपका मूड बेहतर होगा।

भावनाओं का शारीरिक स्थिति पर असर

5. भावनात्मक ट्रिगर्स Triggers को माफ करें

खुद में आत्मविश्वास जगाने के बाद सबसे पहला काम है, भावना को जन्म देने वाले ट्रिगर को माफ करना। चाहे वह कोई इंसान है, कोई परिस्थिति है या कोई सोच है सबको माफ करदें।

क्योंकि जब तक हम भावना पैदा करने वाले ट्रिगर को माफ नही करेंगे, हमारे अंदर विरोध बढ़ता रहेगा और हर बुरी भावना के पीछे का कारण हमारा अंदर का विरोध होता है। उदाहरण के लिए अगर किसी इंसान ने आपको कुछ गलत कहा है तो इंसान को भूलकर सिर्फ उसके द्वारा बोले गए बुरे शब्दों पर ध्यान केंद्रित करो, जिससे आप एक सकारात्मक प्रतिक्रिया दे पाएंगे।

भगवत गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कहा था

हम अपने आप और इंसानियत को कब खो देते हैं?
हमारी अधूरी इच्छाएं निराशा को जन्म देती हैं और निराशा से गुस्सेे का जन्म होता है। गुस्से से हमाराा दिमागी संतुलन बिगड़ जाता है। यह असंतुलन ही हमारी इंसानियत को खत्म कर देता है।

हर भावना की जड़ हमारी अधूरी इच्छा होती है। इसलिए भावनाओं के ट्रिगर को पहचानना बहुत जरूरी है, जिससे हमारी प्रतिक्रिया भी एक वास्तविक कारण के लिए हो, नाकि हमारे सोचे गए कारण के लिए।

6. उदेश्य पर फोकस करें

छोटी छोटी भावनाओं में बहकर गलत फैसले लेने से बेहतर है कि हर काम के पीछे के बड़े उदेश्य को पहचाने और उसके हिसाब से प्रतिक्रिया दे। उदाहरण के लिए आपको आफिस पहुंचना है, लेकिन रास्ते मे किसी व्यक्ति की कोई हरकत आपको गुस्सा दिला देती है, ऐसी अवस्था मे अपने आपको उस गुस्से में न फंसाकर, सारा ध्यान आफिस पहुँचने पर लगाना बेहतर है।

अपनी भावनाओं को दूसरी तरफ केंद्रीत करने की कोशिश करें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका बॉस या कोई आपका प्रतिद्वंद्वी आपको इग्नोर करने की कोशिश करता है, ऐसी स्थिति में उस इंसान पर गुस्सा होने की बजाए, खुद की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित करें। ज्यादा मेहनत करें, ज्यादा एकाग्रता के साथ काम करें और अच्छे परिणाम से खुद को सबसे बेहतर साबित करें।

7. परिवर्तन लाने के लिए काम शुरू करें

भावनाओं पर नियंत्रण के लिए सबसे जरूरी है, उनके लिए काम करना। अपनी भावनाओं को समझने के बाद, एक बेहतर विकल्प की तलाश करके उस पर काम करना शुरू करें। क्योंकि परिवर्तन लाने के लिए काम करना बहुत जरूरी होता है। कुछ भावनाओं को सिर्फ सोच को बदलकर नियंत्रित किया जा सकता है, किन्तु जब तक आप उनपर वास्तविकता में काम नही करेंगे, वही पुराना पैटर्न दोबारा लौट के आ सकता है।

अगर आपको रात में देर से सोने के कारण दिन में तनाव होता है, तो जल्दी सोने की कोशिश करें। शुरुआत में अगर आप हर हफ्ते 15 मिनट भी जल्दी सोना शुरू करते हो तो लगभग 2 महीने में आप एक बेहतर समय सारिणी स्थापित कर सकते हैं, जो आपको व्यर्थ के तनाव से मुक्त कर सकती है।

हो सकता है कि शुरुआत में हमे अच्छे परिणाम न मिलें। लेकिन हमें यह बात ध्यान रखनी है कि हमारी वर्तमान सोच अब तक कि जिंदगी की देन है, इसलिए इसको बदलने के लिए हमे लगातार कोशिश करनी पड़ेगी।

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निष्कर्ष

किसी एक परिस्थिति के प्रति अलग अलग इंसान भिन्न भिन्न तरीकों से प्रतिक्रिया करते हैं। हर इंसान का नज़रिया अलग हो सकता है। इसलिए विज्ञान में भावनाओं को लेकर आज तक कोई कारण और प्रभाव (Cause and Effect) मॉडल नही बनाया जा सका है। इसलिए भावनाओं पर नियंत्रण के लिए हमारा अनुभव और आध्यात्मिक ज्ञान बहुत महत्वपूर्ण है। सबसे जरूरी अपनी सोच के बारे में सोचना है कि हम इस समय क्या सोच रहे हैं। फलस्वरूप हम अपनी सोच के गुलाम न होकर इसको चलाने वाले बन जाएंगे और भावनात्मक बुद्धि को विकसित करने के लिए यह बहुत जरूरी है। विज्ञान में इसको Metacognition और अध्यात्म में वास्तविक स्वंय (True Self) की संज्ञा दी गयी है।

सवाल जवाब

भावनाएं क्या होती हैं?

भावनाएं इंसानी दिमाग की किसी परिस्थिति के लिए प्रतिक्रिया होती है। यह अच्छी या बुरी दोनों प्रकार की हो सकती हैं।

भावनाओं को कैसे पहचान सकते हैं?

जो हमारी वास्तविकता होती है, वह ज्यादातर हमारे दिमाग की बनाई हुई होती है। भावनाएं भी दिमाग की ही उपज हैं, इसलिए इनको पहचान पाना बहुत मुश्किल होता है। अतः बहुत जरूरी है कि हम दिमाग के ऊपर भी ध्यान रखें। हमारी सोच के बारे में भी सोचें। इसको विज्ञान में Metacognition कहा जाता है।

ये कैसे पता चलेगा कि कोई काम भावनाओं में आकर किया गया है?

दिमाग ही हमारी वास्तविकता होता है, इसलिए कई बार भावनाओं और लॉजिकल दिमाग मे फ़र्क़ करना मुश्किल होता है। लेकिन अगर किसी काम को हम बार बार करके पछता रहे हैं, तो वह काम भावनाओं में बहकर किया गया होता है।

क्या भावनाओं को दबाया जाना चाहिए ?

नहीं। क्योंकि भावनाएं लाखों सालों के मानव विकास का परिणाम हैं। बहुत सारी भावनाएं जैसे भय, चिंता, खुशी हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। जो हमें खतरों को भांपने, भविष्य के बारे में प्लान करने, और छोटी छोटी घटनाओं का आनंद लेने में सहायक हैं। इसलिए भावनाओं को दबाने की बजाए, नियंत्रित किया जाना चाहिए।

भावनाओं की समझ को कैसे विकसित कर सकते हैं?

हमारी भावनाओं को नियंत्रित करने का तरीका 7 स्तर में से होकर गुजरता है। ये हैं भावनाओं की पहचान, स्वीकृति, अध्ययन, आत्मविश्वास, माफ करना, लक्ष्य आधारित सोच और काम करने की शुरुआत।

भावनाओं को नियंत्रित करने का एक उपाय क्या है

शोध के अनुसार हमारा भावनात्मक दिमाग, लॉजिकल दिमाग की अपेक्षा दुगनी गति से प्रतिक्रियाएं करता है। इसलिए थोड़ा इंतजार करके रिएक्शन देना भावनाओं को नियंत्रित करने का सबसे बेहतर और आसान तरीका होता है।

Comments

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