जीवन का सारांश
मिल्खा सिंह पंजाब के एक सिख राजपूत परिवार में जन्मे थे तथा भारत की आजादी से पहले और आजादी के बाद एक धावक के रूप में पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाई थी उनको उनकी योग्यताओं के लिए उड़ता सिख या फ्लाइंग सिख की उपाधि दी गई थी।
भारतीय आर्मी में रहते हुए मिल्खा सिंह ने 400 मीटर दौड़ में एशियन तथा कॉमनवेल्थ खेलों में गोल्ड मेडल जीता है। ऐसा करने वाले वह दुनिया के पहले धावक हैं। इसके अलावा मिल्खा सिंह ने 1958 और 1962 के एशियाई खेलों में भी गोल्ड मेडल जीता था।
मिल्खा सिंह ओलम्पिक में
मिल्खा सिंह ने तीन बार ओलंपिक खेलों में भारत को प्रायोजित किया था। इनमें 1956 में मेलबॉर्न (ऑस्ट्रेलिया) 1960 रोम (इटली) और 1964 टोक्यो (जापान) शामिल है। 1960 के ओलंपिक खेलों में मिल्खा सिंह 45.73 सेकंड के सात चौथे नंबर पर रहे जोकि लगभग 40 सालों तक 400 मीटर दौड़ में भारत का रिकॉर्ड रहा।
मिल्खा सिंह को पदम श्री से सम्मानित किया गया था जो कि भारत का चौथा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है। 19 जून सन 2021 को 91 साल की उम्र में कोविड-19 की वजह से उनका देहांत हो गया।
प्रारंभिक जीवन
मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवम्बर 1929 को गुलाम भारत के मुजफ्फराबाद शहर से 10 किलोमीटर दूर गोविंदपुरा नामक गांव में हुआ जोकि वर्तमान पाकिस्तान का हिस्सा है। 1947 में भारत पाकिस्तान विभाजन के समय मिल्खा सिंह के दो भाई, माता पिता और एक बहन की हत्या के बाद अनाथ हो गए थे तथा पाकिस्तान से भागकर आधुनिक भारत में शरण ली थी। शुरुआत में भारत में वह दिल्ली में अपनी एक शादीशुदा बहन के घर रहे जहां पर ट्रेन में बिना टिकट यात्रा करने पर उनको तिहाड़ जेल जाना पड़ा था। उनकी बहन ने अपने गहने बेचकर मिल्खा सिंह को जेल से बाहर निकाला था।
आर्मी में भर्ती
इतनी सब तकलीफ हो के बाद मिल्खा सिंह अपनी जिंदगी से तंग होकर एक डकैत बनना चाहते थे लेकिन उनके एक भाई मलखान ने उनको भारतीय आर्मी जॉइन करने के लिए प्रेरित किया। मिल्खा सिंह 1951 में अपने चौथे प्रयास में आर्मी में भर्ती होने में कामयाब हुए तथा उनको सिकंदराबाद के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग में नौकरी मिली।
मिल्खा सिंह जी दौड़ को देखकर उनको भारतीय आर्मी की एथलीट टीम में शामिल कर लिया गया।
मिल्खा सिंह का अंतरराष्ट्रीय कैरियर
भारत को 400 तथा 200 मीटर दौड़ में तीन ओलंपिक में प्रायोजित करने के साथ साथ मिल्खा सिंह के नाम कॉमनवेल्थ और एशियाई खेलों में कुल मिलाकर 5 गोल्ड मेडल है। हालांकि ओलंपिक खेलों में वह कोई भी मेडल नहीं जीत पाए।
मिल्खा सिंह ने 1958 के कॉमनवेल्थ खेलों में 400 मीटर दौड़ में गोल्ड मेडल जीता था जोकि इन खेलों में आजाद भारत का पहला गोल्ड मेडल था। एथलीट विभाग में 2014 तक कॉमनवेल्थ खेलों में यह भारत का इकलौता गोल्ड मेडल था।

मिल्खा सिंह और पंडित जवाहर लाल नेहरू
मिल्खा सिंह की प्रसिद्ध दौड़ पाकिस्तान के कराची शहर में थी। जब 1960 में जवाहरलाल नेहरू के आग्रह पर मिल्खा सिंह विभाजन की यादों को भुला कर पाकिस्तान के अब्दुल ख़ालिक़ को हराने में सफल रहे थे। इस रेस के बाद ही पाकिस्तान के जनरल अयूब खान ने मिल्खा सिंह को फ्लाइंग सिख से संबोधित किया था।
मिल्खा सिंह की उपलब्धि और पोस्ट
1958 में मिल्खा सिंह जी सफलता के बाद उनको जूनियर कमीशंड ऑफीसर के पद पर प्रमोशन दिया गया था। इसके साथ मिल्खा सिंह 1998 तक पंजाब शिक्षा विभाग में डायरेक्टर के पद पर भी रहे। 2001 में मिल्खा सिंह ने अर्जुन अवार्ड को यह कहकर त्याग दिया था की यह अवार्ड जवान खिलाड़ियों के लिए है मेरे जैसे रिटायर्ड लोगों के लिए नहीं। 2014 में उन्होंने अवार्ड के ऊपर निशाना साधते हुए कहा था कि “आजकल अवार्ड प्रसाद की तरह बांटे जा रहे हैं”।
मिल्खा सिंह का सामाजिक जीवन
मिल्खा सिंह और उनकी बेटी ने उनके जीवन पर एक किताब The Race of My Life नाम से लिखी है। इसी किताब से प्रेरणा लेकर राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने 2013 में भाग मिल्खा भाग नाम से एक फिल्म बनाई जिसमें मिल्खा सिंह का रोल फरहान अख्तर ने निभाया था। यह फिल्म एक सुपरहिट साबित हुई तथा 100 करोड़ से ज्यादा की कमाई की थी।
मिल्खा सिंह का परिवार
मिल्खा सिंह ने 1962 में भारतीय वॉलीबॉल टीम के पूर्व कप्तान निरमल कौर से शादी की थी इन दोनों की तीन बेटियां और एक बेटा (जीव मिल्खा सिंह) है तथा यह परिवार चंडीगढ़ हरियाणा में रहता है। 1999 में उन्होंने 7 साल के बच्चे को गोद लिया जो टीकाराम हवलदार का बेटा था जिन्होंने टाइगर हिल की लड़ाई में देश के लिए अपनी जान का बलिदान दिया था।

मिल्खा सिंह अपनी पत्नी औऱ बच्चों के साथ
मिल्खा सिंह को 24 मई 2021 को कोरोना वायरस निमोनिया के इलाज के लिए फोर्टिस अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां पर 19 जून 2021 को PGI चंडीगढ़ में उन्होंने अंतिम सांस ली।
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